ऐ पँछी उड़ जा दूर गगन में,
इस धरती पर बसेरा तू न कर !!
स्वार्थ समंदर में डूबी दुनिया,
तुझे पिजड़े में रख लेगी,
दो-चार रोज तेरी भूख मिटाकर,
ये तेरी नीलामी कर देगी,
लेकर तेरी प्राणों की आहुति,
जिब्ह्वा की तृप्ति कर लेगी !!
ऐ पँछी उड़ जा दूर गगन में,
बादलों से तूफानों से तू न डर !!
हौसले की चिंगारी तेरे परो में,
हैं अजेय अभिलाषा तेरे नयन में,
तू किरणों से उज्जवलित उरो में,
तू साहस का हैं सन्देश पवन में,
अब उदाहरण बन तू घरो-घरो में,
चल स्वतंत्र हैं तू उड़ निडर गगन में !!
ऐ पँछी उड़ जा दूर गगन में,
इस धरती पर बसेरा तू न कर !!
-ABZH
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