रहता था जो दिल में कल तक,
आज बादल बन आँखों में हैं,
चलता था जो धड़कन के संग,
वो न जाने किन राहों में हैं,
झूठी हैं दुनिया,झूठे हैं रिश्तें,
झूठी हैं इन हाथों की रेखा,
कौन हैं किसका किसको पता हैं,
यहाँ कल को किसने हैं देखा,
पानी गिरता हैं पत्तों पर,
वो पत्तों को हरा रखता हैं,
धुप में ठंडक सबको देकर,
खुद जलकर धुंआ बनता हैं,
सच ही आखिर सच होता हैं,
झूठ कहाँ कभी सच बनता हैं,
मिट्टी जले पर मिट्टी होता हैं,
पत्थर कहाँ कभी मिट्टी बनता हैं,
शेष नहीं ये दर्द का दरिया,
अभी तो समंदर से मिलना हैं,
काँटों के ही राह में चलकर,
हमें चैन-ओ-शुकून मिलना हैं !!
-Chandra Tewary [ABZH]
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