जून, 2011 के लिए पुरालेख

Meri Shayari 2.6

Posted: जून 21, 2011 in Uncategorized

1.

मेरी आँखों को तुम आँसू दो,
ये दर्द-ए-ज़हर मुझे पीने दो,
मैंने सपनें जो कभी देखे हो,
मांगो दुआ न वो कभी पुरे हो,
फिर भी ‘जिंदा’ मैं जब तक रहूँगा ,
मोहब्बत तुमसे मैं करता रहूँगा !! -ABZH

2.

ये दुनिया हैं कहती मुझे आज-कल के ये तो पीता नहीं था ये शराबी नया हैं,
मेरे नशे को न तौलो ऐ दुनियावालों जो इस पैमाने में हैं वो पुरानी दवा हैं !! -ABZH

3.

जीवन-मरण के जन-समंदर में एक छोटी सी कश्ती मेरी भी हैं,
शायद साहिल तक जा नहीं पाऊँ पर डूबने की हस्ती मेरी भी हैं !!
-ABZH

4.

हमें नज़ारें तुम क्या दिखाओगे, कि उसके बिना भी ये साँस चल रही हैं, यही क्या कम हैं ? -ABZH

5.

उठाना खुद को पड़ता हैं, थका हुआ जिस्म अपना, के सांस रुकने से पहले कोई कन्धा नहीं देता !!
– सैयद अहमद शाह “फ़राज़”

6.

तब उन बातों का सिलसिला एक-तरफा था,
कि मानो मेरे होंठ सिले हुए हों,
आखिरी में इल्ज़ाम ये लगा की मेरी धड़कनें बोल रही थी !! -ABZH

7.

थोड़ी जलाई गयी थी और थोड़ी बुझाई गयी थी, वो आग तो आज भी जल रही हैं जो कभी लगाई गयी थी !! -ABZH (देश-भक्त शहीदों को कोटि-कोटि नमन)

8.
के रास्तों का कद बहुत बड़ा होता हैं , ऐ मंजिल तू अपनी औकात में रह !! -ABZH

9.
महफ़िल -महफ़िल रौशनी बिक गयी, रात भर सूरज भी हैरान रहा !! -ABZH

-ABZH

Hum hain hindustani

Posted: जून 12, 2011 in Uncategorized

मुग़लों से तानाशाही सीखी,
अंग्रेजों से ग़ुलामी,
मंदिर-मस्जिद के भेद में पड़कर,
हम हो गए दो जुबानी !!

देश-धर्म की संज्ञा घूसखोरी हैं,
आज भ्रष्टाचार हुआ हैं इमानी,
चीथड़े उड़े हैं संविधान के पन्ने-पन्ने,
आज़ादी सन सैतालिस से हैं पुरानी !!

किसी के पास रुपयों की गाड़ी,
किसी के पास नहीं फूटी कौड़ी,
लूट रहे हैं देश को मिलकर,
सुबह-शाम,दिन-दोपहरी !!

उसे पकड़ो वो बड़ा चोर हैं,
कहता हैं आज देश का नेता,
देखों हम तो आधा लूटा हैं,
कल पूरा लूटेगा मेरा बेटा !!

आज भीष्म-प्रतिज्ञा से भी कठिन कार्य हैं,
देश में कायम करना सत्य न्याय प्रणाली,
आज भी संकीर्ण हृदयों के खेल में फंसे हैं,
यूपी,बिहारी,पंजाबी,मराठी और बंगाली,
उड़िया,तमिल,कन्नड़,तेलुगु और मलयाली !!

अचरज हैं ये कि फिर भी हमें गर्व होता हैं,
ये कहकर कि ‘जिंदा’ हम हैं हिन्दुस्तानी !!

-ABZH (देश के प्रति)

Rote hue aasmaan ko dekha

Posted: जून 11, 2011 in Uncategorized

खिड़की से बाहर नज़र पड़ी तो,
बारिश की बूंदों को गिरते देखा,
कुछ तो पत्तों पर अटके हुए थे,
कुछ को मैंने ज़मीन पे देखा !!

आसमान में बादल घिरे हुए थे,
धुंधली दिखी मुझे किरणों की रेखा,
कुछ देर पहले वहाँ सूरज दिखा था,
फिर ढूंढ़ता रहा मैं वो वृत्त की रेखा !!

बूंदों और पत्तों का प्यार अजूबा,
धरती से गगन के फासले को देखा,
जो पत्तें धुप में जले हुए थे,
उन पर निसार ठंडी बूंदों को देखा !!

एक फटे-पुराने कपड़े में लिपटे,
फूटपाथ पर भींगते एक ग़रीब को देखा,
अमीरों की फेंकी अठन्नी देखी,
एक कटोरे में उलझी उसके संसार को देखा !!

वक्त के दाग लिए मैं भी भटक रहा हूँ,
कि हर खेल में आगे हाथों की रेखा,
आँखों को अब तक अपने अश्क दिखे थे,
इंसान क्या आज रोते हुए आसमान को देखा !!

-ABZH

Koshish karne waalon ki

Posted: जून 10, 2011 in Uncategorized

कोशिश करने वालों की :

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

– हरिवंशराय बच्चन

Ab main raashan kii kataaron mein

Posted: जून 5, 2011 in Uncategorized

अब मैं राशन की कतारों में नज़र आता हूँ,
अपने खेतों से बिछड़ने की सज़ा पाता हूँ,
इतनी महंगाई के बाज़ार से कुछ लाता हूँ,
अपने बच्चों में उसे बाँट के शर्माता हूँ,
अपनी नींदों की लहू पोंछने की कोशिश में,
जागते जागते थक जाता हूँ सो जाता हूँ,
कोई चादर समझ के खींच न ले फिर से “खलील”,
मैं कफन ओढ़ कर फुटपाथ पे सो जाता हूँ !!

-खलील धनतेजवी साहब

Hindi Roman:
ab main raashan kii kataaron mein nazar aataa huun,
apane kheton se bichhadane kii sazaa paataa huun ,
itanii mehangaaii ke baazaar se kuchh laataa huun ,
apane bachchon mein use baant ke sharmaataa huun ,
apanii niindon kii lahuu ponchane kii koshish mein,
jaagate jaagate thak jaataa huun so jaataa huun ,
koii chaadar samajh ke khiinch na le phir se “Khaleel” ,
main qafan odh kar futpaath pe so jaataa huun !!

-Khaleel Dhantejvi Sahab