Ye Na Thi Humaari Kismat
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ये न थी हमारी किस्मत, के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता
तेरे वादे पे जिए हम, तो यह जान झूट जाना
के ख़ुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता
कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीमकश को
यह खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
यह कहाँ की दोस्ती हैं, के बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता, कोई गम गुसार होता
हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यूँ न घर के दरिया
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता
ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़, यह तेरा बयान ग़ालिब
तुझे हम वली समझते, जो न बादा खार होता
-मिर्ज़ा ग़ालिब