तुझे भीड़ पसंद था,
मुझे एकांत,
तुझे तीर पसंद था,
मुझे मझ-धार,
तुझे विवाद पसंद था,
मुझे समर्पण,
तुझे अलंकार,
तो मुझे दर्पण;
तुझे विहग पसंद थे,
मुझे तिनके,
तुझे पुष्प के मनके,
मुझे काँटे,
तुझे विटप पसंद थे,
मुझे पत्ते,
तुझे मनोहारी दृश्य,
तो मुझे आँखें !!
मुझे एकांत,
तुझे तीर पसंद था,
मुझे मझ-धार,
तुझे विवाद पसंद था,
मुझे समर्पण,
तुझे अलंकार,
तो मुझे दर्पण;
तुझे विहग पसंद थे,
मुझे तिनके,
तुझे पुष्प के मनके,
मुझे काँटे,
तुझे विटप पसंद थे,
मुझे पत्ते,
तुझे मनोहारी दृश्य,
तो मुझे आँखें !!
तुझे व्यतिक्रम पसंद था,
मुझे यथार्थ,
तुझे महत्व पसंद था,
मुझे सार्थ,
तुझे द्रुत जल-प्रपात,
मुझे सागर,
तुझे भव्य महल,
तो मुझे अम्बर;
तुझे मार्ग पसंद था,
मुझे आवारा,
तुझे ज्ञान दिशा का,
मुझे दिशा हारा,
तुझे पूर्ण चन्द्रमा,
मुझे तारा,
तुझे कोई जीता हुआ,
तो मुझे हारा !!
-चन्द्र शेखर तिवारी