Saans Ruk Gayi

सुबह भी आई,
रात भी गई,
छाँव जब मांगी,
धुप मिल गई,
चाह थी छोटी,
बात पर कई,
राह जब मिली,
मंजिल छूट गई,
धुन थी नई,
गीत भी कई,
नज़्म जब मेरी,
महफ़िल उठ गई,
आह थी मेरी,
जज़्बात भी वही,
आवाज़ जब बनी,
साँस रुक गई !! -चन्द्र शेखर तिवारी (ABZH)

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