मई, 2011 के लिए पुरालेख

Meri Shayari 2.5

Posted: मई 30, 2011 in Uncategorized

1.
कि जिन पन्नों को बरसों बचाए रखा, आज जो देखा तो रेखा-विहीन हैं !! -ABZH

2.
मुसर्रत जो उसके ग़म में मिली हैं हम उसका ज़िक्र क्या करे, बस इतना जानते हैं कि आज-कल उस जन्नत से भी आवाज़ आती रहती हैं !! -ABZH

3.
किसी एक बेसरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज के कंप्यूटर लैब में एक कागज़ का चिट निचे पड़ा पाया जिस पर बब्बल सोर्ट का प्रोग्राम लिखा था…बड़ा अचरज में था कि दो लाइन का प्रोग्राम और उसके लिए चिट. फिर सोचा कि शायद हीप सोर्ट के लिए ये पूरी किताब लाये होंगे 🙂 -ABZH

4.
इन ऊँची-ऊँची इमारतों में हम क्या करेंगे साहब, हाँ, अगर कोई मिट्टी,ईंट और पत्थर का काम हो तो बताओ !! -ABZH

5.
ये शायरी मेरे इश्क़ की तौबत ही सही, कि हमने चाँदनी रात में भी चाँद को छिपते देखा हैं !! -ABZH

6.
और फिर उलझे रहे मेरे अल्फाज कुछ इस कदर कि ख़ामोशी भी हमें छोड़कर दो कदम आगे निकल गयी !! -ABZH

7.
कौन जाने कितने बाबा आये होंगे भगवान श्री राम का नाम लेकर,
लोक-कल्याण और देश-निर्माण की फरेबी और झूठी दूकान लेकर ,
आज-कल देश-भक्ति के नाम पर कुछ अपने मुट्ठी भर गुलाम लेकर,
दिवा-स्वप्न देखते हैं ये कि कभी राज करेंगे सारा हिंदुस्तान लेकर !!
-ABZH

8.
खुली किताब हमें कहने वाले,
अब तू भी मेरा मोल लगा ले,
कभी बरसो पहले मोल लगी थी,
कि आज देखूँ कितना बदला हूँ मैं !! -ABZH

9.
सब के सब यहाँ चोर, भाई जाए कहाँ कमज़ोर 😦 -ABZH

10.
कभी ज़िन्दगी हँसाएगी तो कभी ज़िन्दगी रुलाएगी,
इंसान हो तुम भगवान नहीं कि हर बात बनती जाएगी !! -ABZH

Tum Aur Hum

Posted: मई 14, 2011 in Uncategorized

तुम शाखाओं पर,
तो हम पत्तों पर,
तुम नदी,
तो हम समंदर,
तुम परिंदों के संग उड़ते आसमान में,
तो हम बादलों के ऊपर,
तुम बहु-मंजिला ईमारत हो,
तो हम मिट्टी,ईंट और पत्थर,
तुम देश के नेता,मंत्री,पूंजीपति,
तो हम निर्धन किसी के दर पर,
तुम द्वंद्व,अभिमान,विवाद से विवश,
तो हम प्रार्थना और दुआ के पथ पर,
तुम महफ़िल-महफ़िल खुशियाँ मनाते,
तो हम जो उजड़े हो उनके छत्त पर,
तुम ज़िन्दगी जी रहे हो सदियों से,
तो हम ‘जिंदा’ होते हैं मर कर !! -ABZH

Meri Shayari 2.4

Posted: मई 8, 2011 in Uncategorized

1.
उस फटे-पुराने आँचल की ,
‘जिंदा’ कहें तू मोल न जाने ,
तेरे लाखों के कपड़े कुछ भी नहीं,
चाहे सोने का तू घोल लगा ले !! -ABZH

2.
ठहरा नहीं वो शबनम का कतरा,
पत्ता-पत्ता रोया था उस दिन,
तूफ़ान भी आया बादल भी गरजा,
रस्ता-रस्ता खोया था उस दिन !! -ABZH

3.
एक बात कह कर मुक़र गए वो,
आज भी सोचता हूँ वो बात क्या थी !! -ABZH

4.
कमबख्त ‘जिंदा’ भी देख सकता था नज़ारे इस जहां के,
कि अश्कों के दर्पण में आज भी एक चेहरा खामोश दिखाई देता हैं !! -ABZH

5.
बातों को बातें ही रहने दो,
उसे जज्बातों से न जोड़ों ,
कि दिल टूटा हुआ भी धड़केगा,
उसे हर मोड़ो पर न तोड़ों !! -ABZH

6.
तो जाओ तुम किसी सरोवर के ठहरे जल से पूछो ठहराव क्या होता हैं ,
उद्गम के निकट किसी नदी की जल धारा से पूछो बहाव क्या होता हैं,
इस मतलबी दुनिया से बोझिल धरती से पूछो दबाव क्या होता हैं,
और किसी टूटे हुए दिल के अंतर से पूछो प्यार में इम्तिहां क्या होता हैं !!
-ABZH

7.
कि वो शाम आज भी अधुरा हैं,
ये चाँद आया था कहने ,
वो बात आज भी कहाँ पूरा हैं,
कि दर्द और भी हैं सहने !! -ABZH

8.
पीछे खड़े रह गए,
जीना न आया हमें,
अश्क बहते रह गए,
पीना न आया हमें !! -ABZH

9.
ऐसे मुस्तकबिल में ज़ख्म तो मौत वाले भी झेलने हैं हमें,
कि उसके इंतजार वाले ज़ख्मों के सितम ही क्या कम थे !! -ABZH

10.
कभी-कभी चाहतों के समंदर में, एक छोटी सी आरज़ू की कश्ती को साहिल तक पहुँचने की मुसर्रत नहीं होती|
खैर, उसका सफ़र अधुरा ही रह जाता हैं| फिर तो वो सिर्फ किसी की जुस्तजू में डूबने की चाहत रखता हैं,
मगर उसे इतनी भी चाहत नसीब नहीं होती कि वो उस समंदर में डूब सके|
हाँ, यकीन तो नहीं होता, पर कमबख्त किसी की जुस्तजू की गहराई इतनी भी हो सकती हैं !!
-ABZH

Baadalon se kahon

Posted: मई 1, 2011 in Uncategorized

Version 1:

बादलों से कहों, ज़मीन पे उतर आ,
कितना प्यारा हैं, ये नजारा ये शमा,
कि फिर चाँद तारे भी आयेंगे,
वो हमारे साथ यु गुनगुनायेंगे !!

कि बारिश न होगा तो,
प्यास कौन बुझाएगा ?
आसमान न होगा तो,
ये बादल कहाँ जाएगा ?

कि राहें अनेक हैं,
पर मंजिल एक हीं !!
कि नदियाँ अनेक हैं,
पर सागर एक हीं !!

आँखों से कहों, ख्वाबों में खो जा,
कितना प्यारा हैं, ये सपनों का जहां,
कि फिर सारी रात सो नहीं पायेंगे,
कि फिर दिन हो तो मर हीं जायेंगे !!

-ABZH

Version:2

बादलों से कहों, ज़मीन पे उतर आ,
कितना प्यारा हैं, ये नजारा ये शमा,
चाँद-तारे भी फिर, आयेंगे अब यहाँ,
और हमारे साथ वो, गुन-गुनायेंगे हाँ !!

कि बारिश न होगा तो,
प्यास कौन बुझाएगा ?
आसमान न होगा तो,
ये बादल कहाँ जाएगा ?

कि राहें अनेक हैं,
पर मंजिल एक हीं !!
कि नदियाँ अनेक हैं,
पर सागर एक हीं !!

आँखों से कहों, ख्वाबों में खो जा,
कितना प्यारा हैं, ये सपनों का जहां,
आज सारी रात हम, सोयेंगे अब कहाँ,
कहीं मर न जाए हम, जो दिन हो यहाँ !!

-ABZH