या दिल से अब ख़ुशी हो चल प्यार हम को प्यारे,
या देख खिंच ज़ालिम टुकड़े उड़ा हमारे,
जीता रखे तू हमको या तन से सर उतारे,
अब तो ‘नज़ीर’ आशिक़ के पहलू पुकारे ॥
राजी हैं हम उसी में जिस में तेरी रजा हैं,
यहाँ यूँ भी वाह-वाह हैं और वूँ भी वाह-वाह हैं ॥
गर मेहर से बुलावे तो खूब जानते हैं,
और ज़ोर से डुबावे तो डूब जानते हैं,
हम इस तरह भी तुझको मेहबूब जानते हैं,
और उस तरह भी तुझको मेहबूब जानते हैं ॥
राजी हैं हम उसी में जिस में तेरी रजा हैं,
यहाँ यूँ भी वाह-वाह हैं और वूँ भी वाह-वाह हैं ॥
अब दर पे अपने हमको रहने दे या उठा दे,
हम सब तरह से खुश हैं रखिया हवा बता दे,
आशिक़ हैं नर-कलन्दर चाहें जहाँ बिठा दे,
या अर्श पर चढ़ा दे या ख़ाक में मिला दे ॥
राजी हैं हम उसी में जिस में तेरी रजा हैं,
यहाँ यूँ भी वाह-वाह हैं और वूँ भी वाह-वाह हैं ॥
बस दिल में हैं तो दिल की आबादियां भी कर ले,
ज़ोरो सितम की अपने गुस्ताखियां भी कर ले,
बे-दर्द हैं तो ज़ालिम बेदर्दियां भी कर ले,
जल्लाद हैं तो काफ़िर जल्लादियां भी कर ले ॥
राजी हैं हम उसी में जिस में तेरी रजा हैं,
यहाँ यूँ भी वाह-वाह हैं और वूँ भी वाह-वाह हैं ॥
-नज़ीर अकबराबादी (१७३५-१८३०)