नवम्बर, 2013 के लिए पुरालेख

Waah Waah

Posted: नवम्बर 29, 2013 in Uncategorized

या दिल से अब ख़ुशी हो चल प्यार हम को प्यारे,
या देख खिंच ज़ालिम टुकड़े उड़ा हमारे,
जीता रखे तू हमको या तन से सर उतारे,
अब तो ‘नज़ीर’ आशिक़ के पहलू पुकारे ॥

राजी हैं हम उसी में जिस में तेरी रजा हैं,
यहाँ यूँ भी वाह-वाह हैं और वूँ भी वाह-वाह हैं ॥

गर मेहर से बुलावे तो खूब जानते हैं,
और ज़ोर से डुबावे तो डूब जानते हैं,
हम इस तरह भी तुझको मेहबूब जानते हैं,
और उस तरह भी तुझको मेहबूब जानते हैं ॥

राजी हैं हम उसी में जिस में तेरी रजा हैं,
यहाँ यूँ भी वाह-वाह हैं और वूँ भी वाह-वाह हैं ॥

अब दर पे अपने हमको रहने दे या उठा दे,
हम सब तरह से खुश हैं रखिया हवा बता दे,
आशिक़ हैं नर-कलन्दर चाहें जहाँ बिठा दे,
या अर्श पर चढ़ा दे या ख़ाक में मिला दे ॥

राजी हैं हम उसी में जिस में तेरी रजा हैं,
यहाँ यूँ भी वाह-वाह हैं और वूँ भी वाह-वाह हैं ॥

बस दिल में हैं तो दिल की आबादियां भी कर ले,
ज़ोरो सितम की अपने गुस्ताखियां भी कर ले,
बे-दर्द हैं तो ज़ालिम बेदर्दियां भी कर ले,
जल्लाद हैं तो काफ़िर जल्लादियां भी कर ले ॥

राजी हैं हम उसी में जिस में तेरी रजा हैं,
यहाँ यूँ भी वाह-वाह हैं और वूँ भी वाह-वाह हैं ॥

-नज़ीर अकबराबादी (१७३५-१८३०)

Zindagi Tere Nashe Me

Posted: नवम्बर 29, 2013 in Uncategorized

ऐ ज़िन्दगी तेरे नशे में, कितने ग़म निशां बने हैं,
आरज़ू तो की नहीं थी, पर बेज़ुबां खुदा बने हैं ॥

चाहतों से रंगीं महफ़िल, कितने हमनवा बने हैं,
पासबान बना न कोई, कि रेत भी तूफां बने हैं ॥

कारवों के जो निशां हैं, सभी एक से मिलते-जुलते,
आँखों में मंज़िल गुजरे, पलकों से हिलते-डुलते ॥

ले पैमानें ज़िन्दगी के, मुश्किलें ही साथ चलते,
बागबां नहीं हो फिर भी, काँटों में फूल खिलते॥

-चन्द्र शेखर तिवारी