नवम्बर, 2015 के लिए पुरालेख

Ab In Houslon Ke Shakh

Posted: नवम्बर 15, 2015 in Uncategorized
अब इन हौसलों के शाख काट कर फेंक दो,
नये शाख निकलेंगे तो शायद कोई सबक होगा,
बरसों से दिये और मोम जलकर राख हुए हैं,
ये सोचकर कि हवाओं में सुकून का महक होगा ।

कि दीवारों और चट्टानों से बचाव मुमकिन नहीं,
जब वक़्त के गुनाहों का ये दरिया समन्दर होगा,
अपने नक़ाब निकाल फेंको कि वो दिन दूर नहीं,
जब जुल्म के तूफानों का राह-बार सिकन्दर होगा ।

वो जो भड़कते हैं सिर्फ अपनों का खून देखकर,
वो बताये तो आखिर मुर्दों का क्या वतन होगा,
मौत किसी की हो, जुल्म की वही निशानी हैं,
इस तरह आपस में बँटवारे से क्या अमन होगा ।

अब आवाज़ ही सही, पर कुछ तो एक सा मिले,
कि मिन्नतों और दुवाओं का कोई तो असर होगा,
अब चींख किसी की हो, सबका दिल एक सा हिले,
किसी मासूम के अरमानों का कँही तो बसर होगा ।  -चन्द्र शेखर तिवारी

Phir Koi Ummeed Bane

Posted: नवम्बर 8, 2015 in Uncategorized

फिर कोई उम्मीद बने, हौसला दराज़ मुमकिन हो,
ख़ल्क़ से दौर चले, रात के आखिर फिर दिन हो।

फिर एक तारीख बने, रंज-ओ-तक़सीम मुश्किल हो,
कारवां फिर से चले, हर एक मोड़ अब मंज़िल हो।

हर तरफ ईमान रहे, फिर चैन-ओ-अमन शामिल हो,
मात पर भी फक्र रहे, अब जीत कुछ यूँ हासिल हो।

दुवाओं में जोर रहे, पर दैर-ओ-हरम न हाकिम हो,
गीता संग कुरान रहे ,सब इंसानियत के खादिम हो। -चन्द्र शेखर तिवारी