मार्च, 2011 के लिए पुरालेख

Chaand se phool se

Posted: मार्च 27, 2011 in Uncategorized

चाँद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिए,
हर तरफ आप का किस्सा हैं जहां से सुनिए !!

सब को आता नहीं दुनिया को सजा कर जीना,
ज़िंदगी क्या हैं मुहब्बत की जुबां से सुनिए !!

मेरी आवाज़ पर्दा हैं मेरे चेहरे का,
मैं हूँ खामोश जहां मुझको वहां से सुनिए !!

क्या ज़रूरी हैं कि हर पर्दा उठाया जाए,
मेरे हालात भी अपनी ही मकां से सुनिए !!

-निदा फ़ाज़ली

Munh ki baat sune har koi

Posted: मार्च 27, 2011 in Uncategorized

मूँह की बात सुने हर कोई,
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के बाज़ारों में,
खामोशी पहचाने कौन !!

सदियों-सदियों वही तमाशा,
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज,
लेकिन जब हम मिल जाते हैं,
खो जाता हैं जाने कौन !!

वो मेरा आईना हैं,
मैं उस की परछाई हूँ,
मेरे ही घर में रहता हैं,
मुझ जैसा ही जाने कौन !!

किरन-किरन अलसाता सूरज,
पलक-पलक खुलती नींदें,
धीमे-धीमे बिखर रहा हैं,
ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन !!

-निदा फ़ाज़ली

Meri Shayari 2.2

Posted: मार्च 21, 2011 in Uncategorized

1.
मिसरा दबा-दबा हैं,
मैं मतला लिख न पाया,
कभी रदीफ़ तक औकात थी,
आज काफिया मिला न पाया !! -ABZH

2.
वक़्त इतना तमकीन नहीं जो हमें अपने साथ मोड़ ले,
अपने वक़्त का मुड़ाव तो हम खुद तय करते हैं !! -ABZH

3.
चोरी के शेरो से पन्ने भरने वाले इस जमाने में मशहुर कम न हुए होंगे,
कि खुदा ही जाने और कितने ‘जिंदा’ काफियें मिलाने में दम तोड़ेंगे !! -ABZH

4.
सरहदें बनाने वाले हवाओं का रास्ता तो रोक न पाए,
‘जिंदा’ दो दिलों में दुरी क्या ख़ाक बढ़ाएंगे !! -ABZH

5.
समंदर की लहरों का शोर था जाया,साहिल से मिलकर भी वो मिल ना पाया !! -ABZH

6.
कभी वो मुहब्बत ही हमारी मंजिल थी, मगर कुछ लोग कहते हैं की वो किसी रकीब का एहसान था !! -ABZH

7.
वो जो कभी जलजलों और तूफानों में उड़ गया था, सुना हैं वो आज हिमालय कहलाता हैं !! -ABZH

8.
कि पहले ये गिरते हैं खुद की ख़ुशी से, फिर जो थामो तो इल्जाम लगे मुज़िर-ए-दीवानगी का !! -ABZH

9.
ऐ ग़ालिब तुझे मेरा सलाम शुक्रिया,
वो शायर है कैसा जो तेरा ज़िक्र न किया !! -ABZH

10.
कि आसमान कभी झुकता नहीं,
कितना भी ऊँचा हो ये ज़मीन,
कितने राँझे हुए कितने मजनू हुए,
पर आज तलक कोई ‘जिंदा’ नहीं !! -ABZH

-ABZH

Zulmat kade mein

Posted: मार्च 20, 2011 in Uncategorized

Zulmat-kade mein mere shab-e-gham kaa josh hain,
Ik shammaa hai daliil-e-sahar, so Khamosh hain !!

Naa muzdaa-e-visaal na nazzaaraa-e-jamaal,
Muddat huii ki aashtii-e-chashm-o-gosh hai !!

Main ne kiyaa hai husn-e-khud-aara ko be-hijaab,
Ae shauq yaan ijaazat-e-tasliim-e-hosh hain !!

Gauhar ko ikd-e-gardan-e-khubaan mein dekhanaa,
Kyaa auj par sitaaraa-e-gauhar-farosh hain !!

Diidaar, vaadaa, hausalaa, saaqii, nigaah-e-mast,
Bazm-e-khayaal maikadaa-e-be-Kharosh hain !!

Ae taazaa vaaridan-e-bisaat-e-havaa-e-dil,
Zinhaar gar tumhen havas-e-na-o-nosh hain !!

Dekho mujhe jo diidaa-e-ibarat-nigaah ho,
Merii suno jo gosh-e-nasiihat-niyosh hain !!

Saaqii ba-jalvaa dushman-e-imaan-o-aagahii,
Mutarib ba-nagmaa rahazan-e-tamkiin-o-hosh hain !!

Yaa shab ko dekhate the ki har goshaa-e-bisaat,
Daamaan-e-baagabaan-o-kaf-e-gul-farosh hain !!

Lutf-e-khiiraam-e-saaqii-o-zauq-e-sadaa-e-chang,
Ye jannat-e-nigaah wo firdaus-e-gosh hain !!

Ya subh dam jo dekhiiye aakar to bazm mein,
Naa vo suruur-o-soz na josh-o-kharosh hain !!

Daag-e-firaaq-e-sohabat-e-shab kii jalii huii,
Ik shammaa rah gaii hai so vo bhii khamosh hain !!

Aate hain gaib se ye mazaamiin khayaal mein,
‘Ghalib’, sariir-e-khaamaa navaa-e-sarosh hain !!

-Mirza Ghalib

Meri Shayari 2.1

Posted: मार्च 7, 2011 in Uncategorized

1.
ऐसे हम तो आज भी इसी ज़मीन पर पड़े रह गए, पर सुना हैं ये आसमानवाले हमे झूँक कर देखा करते हैं !! -ABZH

2.
ऐ दिल अब तू भी जी ले ख़ुशी से,
बस यही कहता रहा मैं ज़िन्दगी से,
की जब भी लौटा हूँ मैं उस गली से,
सिद्दतें बढ़ती गयी हैं मेरी बेखुदी से !! -ABZH

3.
कि चित्तौड़ से आवाज़ आज भी आ रही हैं, जब कभी दुश्मनों ने हमले बोले हैं हिंदुस्तान ने लहू के दरिये पार करवाए हैं !! -ABZH

4.
ऐ मौला बेवजह तू निशान ढूंढ़ रहा हैं, कि तेरे चाहने वाले बे-निशान मर रहे हैं !! -ABZH

5.
सच अगर टूट भी जाए तो वो टूकड़ों में भी सच रहता हैं,
कि हजार झूठ भी मिल जाए पर वो सच नहीं बन सकता हैं !! -ABZH

6.
टूटा ये दिल कि वह महफ़िल वह शाम देखना था,
हाथों की इन दो-चार लकीरों का काम देखना था !! -ABZH

— In Progress.

Ab aksar chup chup se rahe hain

Posted: मार्च 5, 2011 in Uncategorized

अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूं ही कभू लब खोले हैं,
पहले “फिराक” को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं|

दिन में हम को देखने वालो अपने-अपने हैं औकात,
जाओ न तुम इन खुश्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं|

फितरत मेरी इश्क-ओ-मुहब्बत किस्मत मेरी तन्हाई,
कहने की नौबत ही न आई हम भी कसू के हो ले हैं|

बाग़ में वो ख़्वाब-आवार आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर,
डाली-डाली नौरस पत्ते सहस सहज जब डोले हैं|

उफ़ वो लबों पर मौज-ए-तबस्सुम जैसे करवटें ले कौंदें,
हाय वो आलम जुम्बिश-ए-मिज़ागान जब फितने पर तोले हैं|

इन रातों को हारीम-ए-नाज़ का इक आलम होए है नादीम,
खलवत में वो नर्म उंगलियाँ बंद-ए-काबा जब खोले हैं|

ग़म का फ़साना सुनने वालो आखिर-ए-शब् आराम करो,
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं|

हम लोग अब तो पराये से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-“फिराक”,
अब तो तुम्हीं को प्यार करे हैं अब तो तुम्हीं से बोले हैं|

–“फिराक” गोरखपुरी उर्फ़ रघुपति सहाय

Bangaal jara sambhal ke

Posted: मार्च 5, 2011 in Uncategorized

हाँ, भाई आज फिर सभी वोट देने के लिए तैयार हैं,
सुना हैं ये नौ करोड़ लोगों के भविष्य का ब्यापार हैं,
कहीं रुकी रुपयों की सवारी तो कहीं चल रही हथियार हैं,
फिर उन्ही स्वार्थी नेताओं के संबोधन से गूंज रहा गलियार हैं,
किसी का डेरा बालीगंज तो किसी का गोरा बाज़ार हैं,
कस्बों और मुहल्लों में हो रहा झूटे सपनों का प्रचार हैं
किसी को बड़ी बेसब्री से दीदी के नेतृत्व का इंतजार हैं,
तो कोई कहे बुद्ध बाबु के दुबारा जीतने के आसार हैं,
पल्टू हैं बोले ये बड़ा घटिया और स्वार्थी सरकार हैं,
तो लाल्टू हैं बोले ये विपछ नीतिहीन और बेकार हैं,
ये बेचारे पल्टू और लाल्टू दोनों शिक्षित बेरोजगार हैं
इनके मतों से ही जीतने वाले सभी खड़े उम्मीदवार हैं,
जीत किसी की हो पर एक बात हम सबको स्वीकार हैं,
हमारा बंगाल राजनीति के रोग से सदियों से बीमार हैं !!

-ABZH (ये एक बार फिर झूटे सपने बेचने निकले हैं, बंगाल जरा संभल के !! )

Nayi kavitayen 1.0

Posted: मार्च 5, 2011 in Uncategorized

1.
हमदर्द सहारा देखते हो,
तुम रोज नजारा देखते हो,
मंजिल हरारा देखते हो,
महफ़िल शरारा देखते हो,
हर साल तुम्हारा देखते हो,
हर चाल दुबारा देखते हो,
खून निकली थी तब कितनो की,
फिर ये देश हमारा देखते हो !! -ABZH

2.
तिनका,बसेरा ढूंढ़ रहा हूँ,
सूरज,सबेरा ढूंढ़ रहा हूँ,
बहुत हुआ रकीबो से दिल लगाना,
अब कोई मेरा ढूंढ़ रहा हूँ !! -ABZH

— In Progress

Ye na thi humaari kismat

Posted: मार्च 5, 2011 in Uncategorized

ये न थी हमारी किस्मत:

ये न थी हमारी किस्मत, के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता

तेरे वादे पे जिए हम, तो यह जान झूट जाना
के ख़ुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता

कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीमकश को
यह खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता

यह कहाँ की दोस्ती हैं, के बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता, कोई गम गुसार होता

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यूँ न घर के दरिया
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता

ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़, यह तेरा बयान ग़ालिब
तुझे हम वली समझते, जो न बादा खार होता

-मिर्ज़ा ग़ालिब

Dost yahaan jab bhi mile

Posted: मार्च 3, 2011 in Uncategorized

दोस्त यहाँ जब भी मिले होश उड़ाने वाले,
हमने भी देखे हैं कई रंग जमाने वाले,
ऐ खुदा तेरी दुनिया में हर क़र्ज़ चुकाने वाले,
अपनी तरह और कितने हैं दर्द उठाने वाले,
हर मोड़ पर मिलते हैं खुशियाँ चुराने वाले,
कितने अच्छे थे वो मेरे हाल पुराने वाले,
एक रिश्ते तोड़कर दुसरे रिश्ते बनाने वाले,
कितने मिल जायेंगे यहाँ जश्न मनाने वाले,
दोस्त बने कितने बने ऐ दुनिया से जाने वाले,
कोई पूछे तो खबर मिले अपने हीं थे मिटाने वाले !!
-ABZH