नवम्बर, 2010 के लिए पुरालेख

Phool Aur Pattein

Posted: नवम्बर 30, 2010 in Uncategorized

मैंने सड़क के किनारे खड़े एक सिरिश के पेड़ को देखा,
दोपहर की धुप में मिट्टी पर पत्तों की टेढ़ी-मेढ़ी खिंची रेखा,
कुछ और ऊपर देखा तो खिले ढेर सारे रंग-बिरंगे फूल थे,
हरे-हरे पत्तों के बीच फूलों पर न धुल थे न शूल थे ,
फिर नजर पड़ी तो देखा उन फूलों की कोमल काया,
इतनी कड़ी धुप थी पर क्यों उन पर तनिक भी खरोच न आया,
रह गया दंग मैं देख कर उन फूलों का हवाओ में इतराता वृन्द,
ध्यान में आया की सबसे ऊपर तप रहा हैं कुछ पत्तों का श्रृंग,
तो अच्छा, इन फूलों की कोमल काया पर हैं इन पत्तों की ठंडी छाया,
मोहब्बत क्या हैं दीवानगी क्या हैं कोई इन पत्तों से जाकर पूछे,
इतने प्यार से इतनी तपिश सहन कर ये इन फूलों की जीवन गूथे,
कुछ लोग इसी बीच इस सिरिश के तने को लगे जोरो से हिलाने ,
कितने खुश थे ये पत्तें ये पुष्प पर ये लोग इन फूलों को लगे गिराने
लगे अपनी शक्ति आजमाने लगे बड़े बड़े थैलों में फूलों को सजाने,
पत्ते बिलखे,रोये,तड़पे पर फूलो से आखिर गए बिछड़,
फूलों का वृन्द अब न रहा कई फूलों का दम गया उखड़,
मैं सोचता हूँ, यह मनुज भी कभी-कभी कितना आश्चर्य कृत्य करता हैं ,
खुद तो प्यार मोहब्बत से रह नहीं पाया, इन पत्तों और फूलों को जुदा करता हैं,
पत्थरों और इस नश्वर दुनिया को सजाने के लिए, क्यों इनकी प्यार भरी दुनिया तबाह करता हैं !

— ABZH

Insaan kya dekh raha hain !!

Posted: नवम्बर 29, 2010 in Uncategorized

वो धरा के ऊपर खुला विस्तृत आसमान देख रहा हैं,
या जाती,आरछण और अपनी संकीर्ण पहचान देख रहा हैं !
वो किसी अमीर की चमकती दूकान देख रहा हैं,
या किसी गरीब की भूखी और तड़पती शाम देख रहा हैं !

मेरे देश में सुना हैं हर आदमी इंसान देख रहा हैं पर पता नहीं वो क्या हैं जो यह इंसान देख रहा हैं !!

बाज़ार में बिका हुआ अपना ईमान देख रहा हैं,
या मोहम्मद,जीसस,गौतम और राम देख रहा हैं !
अपना इंडिया, भारत और हिन्दोस्तान देख रहा हैं,
या अमेरिका, ब्रिटेन और जापान देख रहा हैं !

मेरे देश में सुना हैं हर आदमी इंसान देख रहा हैं पर पता नहीं वो क्या हैं जो यह इंसान देख रहा हैं !!

अपने अंतर में छिपा हैवान देख रहा है,
या मोहब्बत,शांति,भाईचारे का पैगाम देख रहा हैं !
वो कोई मित्र, मुसाफिर, मेहमान देख रहा है,
या किसी को क़त्ल करने का इंतजाम देख रहा हैं !

मेरे देश में सुना हैं हर आदमी इंसान देख रहा हैं पर पता नहीं वो क्या हैं जो यह इंसान देख रहा हैं !!

वो समाज में भ्रष्टाचार के विजय की जय गान देख रहा हैं,
या अपनी मतलबी और झूठी जुबान देख रहा हैं !
पैसे के लालायित कानूनी गिरेहबान देख रहा हैं,
या किसी बेगुनाह पर थोपा गया इलज़ाम देख रहा हैं !

मेरे देश में सुना हैं हर आदमी इंसान देख रहा हैं पर पता नहीं वो क्या हैं जो यह इंसान देख रहा हैं !!

हा , आजकल सुना हैं हर आदमी इंसान देख रहा हैं पर पता नहीं वो क्या हैं जो यह इंसान देख रहा हैं !!

— ABZH

Media ka yeh shor hain

Posted: नवम्बर 28, 2010 in Uncategorized

Media ka yeh shor hain,
Sara India chor hain,
Raat ko kahe bhor hain,
Iska itna zor hain !!

Isko sab pata hain,
Iske paper me chhapa hain,
Dharati kitna tapa hain,
Iske daftar me napa hain !!

— In progress.

मीडिया का यह शोर हैं,
सारा इंडिया चोर हैं,
रात को कहे भोर हैं,
इसका इतना जोर हैं !!

इसको सब पता हैं,
इसके पेपर में छपा हैं,
धरती कितना तपा हैं,
इसके दफ्तर में नपा हैं !!

— ABZH

Tumko sheeshagari nahi aati

Posted: नवम्बर 28, 2010 in Uncategorized

तुमको शीशागरी नहीं आती|
यूँ कहो जिंदगी नहीं आती|

एक हवेली की ओट पड़ती है,
मेरे घर रौशनी नहीं आती|

अपने अश्कों को रायगा न करो,
पत्थरों में नमी नहीं आती|

हम हमेशा दुआएं देते है,
क्या करें दुश्मनी नहीं आती|

रोज मिलते हो कैसे मिलते हो,
फासले में कमी नहीं आती|

मैंने देखा था आइना एक दिन,
अब किसी पे हंसी नहीं आती|

–राजीव मतवाला

Jobless engineers

Posted: नवम्बर 21, 2010 in Uncategorized

Duniya ki kyon care kare, Jab diya na humko kaam;
B.Tech-M.Tech sab kar daala, Phir bhi koi na daam !!
Hum hain joblessss, Jobless engineers; Hum hain joblessss, Jobless engineers !!

Professor damruwala tu baat bada karta hain,
Algorithm ka syrup pikar kyon marta rehta hain !!
DFA NFA tu aaj bhi sapano me aata hain,
C++ ho ya Java aaj kiska kya jata hain !!

Hum hain joblessss, Jobless engineers; Hum hain joblessss, Jobless engineers !!

Thermodynamics se yeh system hai pura mix,
Har vacancy to yaha par bhai pehle se hai fix !!
Economics bhi dara hua hain dekh ke politics,
Job yahaa wahi paayega jo four ko karega six !!
Hum hain joblessss, Jobless engineers; Hum hain joblessss, Jobless engineers !!

Hum hain joblessss, Jobless bachelors; Hum hain joblessss, Jobless bachelors !!
Hum hain joblessss, Jobless engineers; Hum hain joblessss, Jobless engineers !!

— In Progress

— ABZH

My Shayari New 1.7

Posted: नवम्बर 21, 2010 in Uncategorized

1.
आँखों ने सोचा नहीं, अश्को को पर था यकीन !!
साँसों से जुड़कर कभी, होंगे वो कल यु अजनबी !!

2.
सिर्फ एक महफूज़ कारवाँ ही सब कुछ नहीं हैं, ज़िन्दगी जीने के दरीचे कई और भी हैं !!
यु तो ये रिश्ते धागों के जोर पर टिके होते हैं, पर कुछ ऐसे भी हैं जहाँ कोई डोर नहीं हैं !!

3.
फिर एक बार न जाने क्यों दिल की धूमिल ख्वाइश पर उलझे हसरतों की जुस्तजू टिकी हैं,
ऐ दुनिया तेरा शुक्रिया कि तेरे दर पर अपनी तो हर एक चाहत हर एक आरजू बिकी हैं !!

4.
राहत-ए-तन्हाई जिंदगी सौदाई, दर्द-ए-जुनून लेकर फिर तेरी याद आई !!

5.
अश्कों को तुम छेड़ो मत की ये लहू जिगर के हैं, दर्द भाव हैं ये जीवन के सिर्फ ख़ुशी से डरते हैं !!

6.
हसरतों के सूने मेलें अब नहीं लगते; नहीं सजती उम्मीदों की वो झूठी महफ़िल; और नहीं आज यह परवाना किसी शमा में जला करता हैं,
बस कुछ अश्कों का काफिला मिलता हैं; और आज न जाने क्यों यह दिल फिर किसी बेवफा की खोज में हैं और हर वफ़ा से डरा करता हैं !

7.
आखिर,हम उस खुदा से क्यों शिकायत करें? काश,की दिल उसके भी कभी टूटे होते,किसी बेवफा से मोहब्बत की अर्ज़ रही होती !!

8.
ये इंतज़ार तो एक कश्मकश की दीवार थी; जिसे हमने माना, हम तो आज भी खड़े हैं उसी मकाम पर; तुने बदला ठिकाना !!

9.
काश तारीखें भी पीछे चलती, फिर तो न जाने कितनी ज़िंदगियाँ फिर से जी उठती, कितने वादे फिर से किये जाते, और कितने टूटे दिल एक बार फिर जूट जाते !!

10.
अब कभी राह में तुम हमें मिल जाओं ये मुमकीन नहीं, हम चाहें भी तो कितना जब इन राहों पे यकीन नहीं !!

– ABZH

Dipak Jalaana Kab Manaa Hain

Posted: नवम्बर 20, 2010 in Uncategorized
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– हरिवंश राय बच्चन

Dekho toot raha hain taara

Posted: नवम्बर 20, 2010 in Uncategorized

देखो, टूट रहा हैं तारा !

नभ के सीमाहीन पटल पर ,
एक चमकती रेखा चलकर ,
लुप्त शून्य में होती, बुझता एक निशा का दीप दुलारा !
देखो, टूट रहा हैं तारा !

हुआ न उड्डगण में क्रंदन भी ,
गिरे न आंसू के दो कण भी ,
किसके उर में आह उठेगी, होगा जब लघु अंत हमारा !
देखो, टूट रहा हैं तारा !

यह परवशता या निर्ममता ?
निर्बलता या बळ कि क्षमता ?
मिटता एक, देखाता रहता, दूर खड़ा तारक-दल सारा !
देखो, टूट रहा हैं तारा !

– हरिवंश राय बच्चन

Tum Mujhe Pukar Lo

Posted: नवम्बर 20, 2010 in Uncategorized

तुम मुझे पुकार लो :

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !

ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहाँ न अजनबी गिना गया,
कहाँ-कहाँ न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता,
कहाँ मनुष्य है कि जो उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !

तिमिर-समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी,
विनष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी विरह-घिरी विभावरी,
कहाँ मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की,
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे दुलार लो !

उजाड़ से लगा चुका उमीद मैं बहार की,
निदघ से उमीद की बसंत के बयार की,
मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी,
अंगार से लगा चुका उमीद मै तुषार की,
कहाँ मनुष्य है जिसे न भूल शूल-सी गड़ी
इसीलिए खड़ा रहा कि भूल तुम सुधार लो !

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !

– हरिवंश राय बच्चन

Tumul Kolahal Kalah Mein

Posted: नवम्बर 14, 2010 in Uncategorized

तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन |

विफल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक सी रही तब, मैं मलय की बात रे मन |

चिर विषाद विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर वन की,
मैं उषा-सी ज्योति रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन |

जहां मरू-ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती,
उन्हीं जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन |

पवन के प्राचीर में रुक,
जला जीवन जी रहा झुक,
इस झुलसते विश्व दिन की, मैं कुसुम ऋतु रात रे मन |

चिर निराशा नीरधर से,
प्रतिच्छायित अश्रु-सर से,
मधुप मुख मकरंद मुकुलित, मैं सजल जलजात रे मन |

– जय शंकर प्रसाद