मैंने सड़क के किनारे खड़े एक सिरिश के पेड़ को देखा,
दोपहर की धुप में मिट्टी पर पत्तों की टेढ़ी-मेढ़ी खिंची रेखा,
कुछ और ऊपर देखा तो खिले ढेर सारे रंग-बिरंगे फूल थे,
हरे-हरे पत्तों के बीच फूलों पर न धुल थे न शूल थे ,
फिर नजर पड़ी तो देखा उन फूलों की कोमल काया,
इतनी कड़ी धुप थी पर क्यों उन पर तनिक भी खरोच न आया,
रह गया दंग मैं देख कर उन फूलों का हवाओ में इतराता वृन्द,
ध्यान में आया की सबसे ऊपर तप रहा हैं कुछ पत्तों का श्रृंग,
तो अच्छा, इन फूलों की कोमल काया पर हैं इन पत्तों की ठंडी छाया,
मोहब्बत क्या हैं दीवानगी क्या हैं कोई इन पत्तों से जाकर पूछे,
इतने प्यार से इतनी तपिश सहन कर ये इन फूलों की जीवन गूथे,
कुछ लोग इसी बीच इस सिरिश के तने को लगे जोरो से हिलाने ,
कितने खुश थे ये पत्तें ये पुष्प पर ये लोग इन फूलों को लगे गिराने
लगे अपनी शक्ति आजमाने लगे बड़े बड़े थैलों में फूलों को सजाने,
पत्ते बिलखे,रोये,तड़पे पर फूलो से आखिर गए बिछड़,
फूलों का वृन्द अब न रहा कई फूलों का दम गया उखड़,
मैं सोचता हूँ, यह मनुज भी कभी-कभी कितना आश्चर्य कृत्य करता हैं ,
खुद तो प्यार मोहब्बत से रह नहीं पाया, इन पत्तों और फूलों को जुदा करता हैं,
पत्थरों और इस नश्वर दुनिया को सजाने के लिए, क्यों इनकी प्यार भरी दुनिया तबाह करता हैं !
— ABZH