Taskeen Ko Hum Na Roye

तस्कीन को हम न रोए जो ज़ौक-ए-नज़र मिले,
हूरान-ए-खुल्द में तेरी सूरत मगर मिले !!

अपनी गली में मुझ को न कर दफ़न बाद-ए-क़त्ल,
मेरे पते से खल्क को क्यों तेरा घर मिले !!

साकी गरी की शर्म करो आज वरना हम,
हर शब् पीया ही करते हैं मै जिस क़दर मिले !!

तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम,
मेरा सलाम कहीयो अगर नामाबर मिले !!

तुम को भी हम दिखाए के मजनूं ने क्या किया,
फुर्सत कशाकश-ए-गम-ए-पिन्हाँ से गर मिले !!

लाजिम नहीं के खिज्र की हम पैरवी करें,
माना के एक बुज़ुर्ग हमें हमसफ़र मिले !!

ऐ साकनान-ए-कूचा-ए-दिलदार देखना,
तुम को कहीं जो ग़ालिब-ए-आशुफ्ता सर मिले !!

 

-मिर्ज़ा ग़ालिब

 

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